Showing posts with label Hindi. Show all posts
Showing posts with label Hindi. Show all posts

Saturday, July 12, 2014

खुली किताब

केहता रहा सबसे ।
खुली किताब सा हूँ मैं ॥

पर वज़न इतना।
की उठा नहीं सकता कोई॥

कोरे से कागज़ पे।
सफेद स्याही से लिखा हूँ अपना कच्चा चिट्टा॥

अल्फ़ाज़ इतने उल्झे ।
कोई इक कड़ी भी समझ न पाए कोई ॥

चाहता हूँ बार, समझे कोई ।
पर हर कोशिश पे, अपने ही सन्नाटे में सेहम सा जाता हू।

असर इतना खुदी पे।
की हर कोशिश पे, खुद ही सील देता हूँ खुद को ॥

 ऊमीदे की लहर है,  बदलेगी मेरी सोच।
खुदी को खुद ही समझ लूँ में कभी॥

Sunday, March 16, 2014

पेहचान ले

हर कोइ अपनी ही लड़ाई में आगे है ।
पर हर पल सोचता है, किसी और से आगे बढ़ना है॥

दो पल कि जिंदगी मैं ।
अपने साये को पीछे छोड़ने कि कोशिश है ॥

है चाहत खुदसे तो, पूछ लो अपने ज़मीर से।
हर पल उसके वक़्त ने क्या चाहा है॥

हर बार पलट के येही आयेगि।
तू है खूबसूरत, उससे भी ज़यादा खूबसूरत तेरी ज़िन्दगी॥

खुदी को ले ढूंढ, आपने आप को पहचान ।
उसी में खुसी है, न कोई बैर ना लड़ाई।

आपने ही लम्हों में, खुदी को जी लेंगे।
अपने इसी खुसी में, जिले आपनी ज़िन्दगी को ॥

Saturday, March 01, 2014

मेरी रंगीनियां

मैं  ढूँढता रहा ज़िन्दगी में रंगीनियां और नयापन।
पर भुला सा बैठा  खुद के चले पथ को देखना ॥
मेरे इस पथ में इतने मोड़ हैं ।
जितनी हसीँ के ठहाके छूटे, और ग़मों कि आंसूं निकले ॥

कितने सारे रिस्ते जोड़े ।
कुछ छूट गये वक़्त के साथ, तो कई गड़ गये मेरे संग ॥
जो छूट गऐ उन्हें भुला न सका,जो जुड़ गऐ उन्हें याद न किया ॥

ईरादे कई किये, कई सपनों के संग।
वक़्त ने हर बार किया मुझे दांग॥
कुछ में इरादे थे पक्के, पर कोशिश था कम॥
कुछ गऐ छूट, तो कुछ रहे अधूरे॥

 हर बार सोचा कुछ करूँ नया या अलग।
लाऊं कुछ नयापन अपने में।
भूल बैठा कि हर सोंच में, मैंने एक नया इंसान को देखा।
एक नया नाटक बनते और बिगड़ते देखा।
हर लम्हे में एक रंगीनियां और नयापन देखा॥

Wednesday, February 05, 2014

एक वादा खुदसे

ठहरा रहा उम्मीद से
की सुनेगा कोई ॥
पर इन लब्ज़ों की तन्हाई मैं
आया ना कोई ॥

मैं अपनी परछाई को
दोस्ती का वास्ता दे बैठा ॥
उन्हें छोड़ चला राहों में
जो हाथ पसारे खड़े थे,
उन चौराहे और गलियरों  में ॥

सायद न था कभी
अपने पे भरोसा ॥
जो यारों पे ना कर सका
उनके वादों कि सचाई का आस्था ॥

रह न जाऊं उन्ही पल्लों में
उस परछाई कि आड़ में॥
आशा कि उम्मीद है
थामूंगा आपने यारों कि हातों को ॥

यह वादा रहा खुद से
ढूंढूंगा अपने वजूद को ॥
पहचानूँगा अपने आपको
पर फिरसे कभी न खोउंगा अपपने आप को
किसी सन्नाटे वाली मोड़ पे ॥