Wednesday, February 05, 2014

एक वादा खुदसे

ठहरा रहा उम्मीद से
की सुनेगा कोई ॥
पर इन लब्ज़ों की तन्हाई मैं
आया ना कोई ॥

मैं अपनी परछाई को
दोस्ती का वास्ता दे बैठा ॥
उन्हें छोड़ चला राहों में
जो हाथ पसारे खड़े थे,
उन चौराहे और गलियरों  में ॥

सायद न था कभी
अपने पे भरोसा ॥
जो यारों पे ना कर सका
उनके वादों कि सचाई का आस्था ॥

रह न जाऊं उन्ही पल्लों में
उस परछाई कि आड़ में॥
आशा कि उम्मीद है
थामूंगा आपने यारों कि हातों को ॥

यह वादा रहा खुद से
ढूंढूंगा अपने वजूद को ॥
पहचानूँगा अपने आपको
पर फिरसे कभी न खोउंगा अपपने आप को
किसी सन्नाटे वाली मोड़ पे ॥  

4 comments:

Nebu said...

Sahi hai guru.
thoda spelling mistakes hai. Saayad nahin Shaayad.

Anubhav Mohanty said...

वाह! क्या बात है!

Unknown said...

Dhanyawad...

Unknown said...
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