Saturday, March 01, 2014

मेरी रंगीनियां

मैं  ढूँढता रहा ज़िन्दगी में रंगीनियां और नयापन।
पर भुला सा बैठा  खुद के चले पथ को देखना ॥
मेरे इस पथ में इतने मोड़ हैं ।
जितनी हसीँ के ठहाके छूटे, और ग़मों कि आंसूं निकले ॥

कितने सारे रिस्ते जोड़े ।
कुछ छूट गये वक़्त के साथ, तो कई गड़ गये मेरे संग ॥
जो छूट गऐ उन्हें भुला न सका,जो जुड़ गऐ उन्हें याद न किया ॥

ईरादे कई किये, कई सपनों के संग।
वक़्त ने हर बार किया मुझे दांग॥
कुछ में इरादे थे पक्के, पर कोशिश था कम॥
कुछ गऐ छूट, तो कुछ रहे अधूरे॥

 हर बार सोचा कुछ करूँ नया या अलग।
लाऊं कुछ नयापन अपने में।
भूल बैठा कि हर सोंच में, मैंने एक नया इंसान को देखा।
एक नया नाटक बनते और बिगड़ते देखा।
हर लम्हे में एक रंगीनियां और नयापन देखा॥

1 comment:

Nebu said...

Achaa likhaa hai. Time mil jaata hai kyaa?